(यह गीत आठ अगस्त को लिखा गया था पर
कंप्यूटर प्रॉब्लम के कारण विलंब से ब्लॉग हुआ ) एक गीत आज अपने लिए भी आज तिरासी पार हो गए स्मृति-पट पर धुंधले चित्र बनते और बिगड़ते हैं , मीठे खट्टे अनुभव के पल सजते और सिहरते हैं बचपन तथा किशोर वयस के सपने तार तार हो गए आज तिरासी ....... कपडे नए, नए जूते थे राजकुमारों से लगते थे , गौनई मंजीरे ढोलक पर गुलगुले बतासे बँटते थे माँ के हाथों दूध-बतासा- तिल, के दिन दुश्वार हो गए आज तिरासी ..... भरी जवानी में इतराया छोडूं क्या स्वीकार करुँ, भीड़ लगी रहती आँगन में किसको कितना प्यार करुँ फूलों के वे सब गुलदस्ते ढली उमर तो खार हो गए .... आज तिरासी ..... हुए अधेड़ समय खप जाता लाभ-हानि के गुणा- भाग में परिवारिक दायित्व निभाते खींच तान जो मिला हाथ में उलझे समीकरण सुलझाते कुछ सुलझे कुछ उधार हो गए आज तिरासी ..... आठ दशक बीते जीवन के आ घेरा पत्नी-वियोग ने , शुरू हो गई उलटी गिनती डाला डेरा रोग शोक ने
हारे थके हुए मांझी के
डांडे बीच धार खो गए आज तिरासी .......
अब नहीं सिमटती साँसों का
उद्देश्य शेष कोई अपना ,
शब्द-सृजन की पूंछ पकड़
वैतरणी के पार का सपना
लगन लगी उनसे मिलने की ,
चिता सेज जो यार सो गए आज तिरासी पार हो गए
कमल
4 comments:
आठ दशक की जीवन यात्रा का निचोड! जन्मदिन की बधाई॥
adarniy empershad ji ,
shubhkaamnaon ke liye aabhaari hun .
kamal
आदरणीय आपके शब्दों भावों से मिलकर अच्छा लगा
बचपन और जवानी बुढापे और ज्यादा याद आते हैं कभी लिखा था
बचपन
किसी का भी हो
सलोना होता है
मगर यह
वक्त के हाथों से
छूटा खिलौना होता है
जिसे पाकर
हर कोई हंसता है
जिसे खोकर हर कोई रोता है
ऐसा तो यहां बार-बार होता है
हां एक बात और इस word verification ko हटाएं यह वैरी तो बैरी लगता है
मेरे ब्लॉग्स
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डा.रमा द्विवेदी...
आदरणीय कमल जी,
विलंब से ही सही `जन्म दिन ढ़ेरों हार्दिक शुभकामनाएं'!
आप चिरायु हो,स्वस्थ्य रहें ईश्वर से यही प्रार्थना है।
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