Sunday, August 16, 2009

वर्षा - विरह

वर्षा -विरह स्वाती की बूदों को बन्दी बना ले गया प्यासा सावन नियति-गति मारा पपिहारा पी पी रटता रहा रात भर चैन चुरा कर सावन भागा नींद चुरा ली है भादों ने भरी बदरिया में रीता मन तरसे है सूनी रातों में बीहड़ में भटका बनजारा सी सी करता रहा रात भर निगल गया परदेस पिया को मेरा दुश्मन बन बैठा है पतियाँ लील गया वह सारी जाने क्यों मुझसे ऐंठा है आंसू पोंछ पोंछ ध्रुवतारा छिन छिन तकता रहा रात भर भोर चढ़ी ज्यों विपदा मारी साँझ ढली जैसे अगियारी हवा बही आतप की जारी बूंदों बरस गई चिनगारी बौराया आँगन का सुगना सीटी भरता रहा रात भर सूनी सेज पिया की जैसे फंसी कलेजे बीच कटारी पावस की घन अंधियारी में बीती- यादों की बटमारी सिहर सिहर दीपक बेचारा टिम टिम जलता रहा रात भर काली घटा उमड़ती नभ पर सोई पीर जाग उठती है गहरे पैठी तीस ह्रदय की भीतर ही भीतर घुटती है घनीभूत पीड़ा भर आंसू टप टप झरता रहा रात भर बाहर बरसे मेघ झमाझम भीतर तडपे चिर-विरही मन नभ गरजे दामिनि जब दमके हुड़क हुड़क खनके कर कंगन मंझधारे घिर मन मछुआरा जी जी मरता रहा रात भर संध्या की अलकावालियों में इन्द्रधनुष ने रंग भर दिए शरमाई सरसिज कलियों ने अपने सम्पुट बंद कर लिए मनुहारों मन हारा भंवरा भुन भुन करता रहा रात भर कमल

1 comment:

Anonymous said...

Абалденный пост!!!
:)