Sunday, August 2, 2009

( व्यंग कविता ) तुकबंदी जी

तुकबंदी जी एक तुकबंदी जी अचानक पधारे बोले आप पूजनीय अग्रज हमारे नवोदित कवि हूँ कविता सुन लीजिये मैंने कहा स्वागत है आसन ग्रहण कीजिये कहने लगे कविता में झलकता यथार्थ है मैंने कहा सत्य है निराला पदार्थ* है ( * पद + अर्थ ) बोले अर्ज़ किया है आप दाद दीजिये , मैंने कहा आतुर हूँ इरशाद कीजिये " पेड़ों पर फूले हैं लाल पीले पलाश , धरती है नीचे ऊपर नीला आकाश " मन ही मन कहा मैंने हाय तेरा सत्यानाश , प्रकट में बोला किंतु वाह बेटा शाबाश कविता तो तुम्हारी बड़ी चोटी की है, रचना यह अति उच्चकोटी की है निर्भय हो इसी भांति कविता करते रहो, साहित्याकाश में छुट्टा विचरते रहो ! कमल

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