skip to main |
skip to sidebar
पुस्तकें
पुस्तकें
गूढ तत्वज्ञान की
भंडार थीं वे पुस्तकें
जिन्हें सहेज रखना
मैंने कभी जाना नहीं
शायद उन पुस्तकों ने
मुझे भी कभी अपना
संरक्षक सा माना नहीं
उन्हें खोला था पढ़ा था
फ़िर उनमें खोया था
पर जब वे खो गयीं
तो बहुत रोया था
कमल
3 comments:
अच्छी कविता, कमल जी। सही है, अच्छी किताबें खो जाने पर गम होता ही है। मर्मस्पर्शी कविता-बधाई।
बहुत सुन्दर भाव, कमल जी!
आदरणीय प्रसाद जी एवं अनुराग जी,
पुस्तकें शीर्षक कविता की सराहना के लिए आभारी हूँ | अनुराग जी बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आपको देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई| धन्यवाद |
कमल
Post a Comment