Sunday, August 2, 2009

पुस्तकें

पुस्तकें गूढ तत्वज्ञान की भंडार थीं वे पुस्तकें जिन्हें सहेज रखना मैंने कभी जाना नहीं शायद उन पुस्तकों ने मुझे भी कभी अपना संरक्षक सा माना नहीं उन्हें खोला था पढ़ा था फ़िर उनमें खोया था पर जब वे खो गयीं तो बहुत रोया था कमल

3 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अच्छी कविता, कमल जी। सही है, अच्छी किताबें खो जाने पर गम होता ही है। मर्मस्पर्शी कविता-बधाई।

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर भाव, कमल जी!

Kamal said...

आदरणीय प्रसाद जी एवं अनुराग जी,
पुस्तकें शीर्षक कविता की सराहना के लिए आभारी हूँ | अनुराग जी बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आपको देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई| धन्यवाद |
कमल