Thursday, August 6, 2009
व्यंग कविता नेता पुराण
नेता - पुराण
इन्हें गले लगाइए ये युग-प्रणेता हैं ,
माला पहनाइए स्वनामधन्य नेता हैं
देश में भले ही अभनेता, विधिवेता हैं,
भारत में महान सर्वशक्तिमान नेता हैं
किसी नगर में गर कमाना घर बसाना है
पहले वहां नेता को पूजना मनाना है
नेता इस युग के महंत सर्वज्ञानी हैं,
किसी अदृश्य-शक्ति के अनंत वरदानी हैं
राज-सत्ता इनकी हुक्मबरदार बांदी है ,
कोई हो सरकार इनकी चाँदी ही चाँदी है
इनका आधार भले दलित पिछड़ा वर्ग हो,
किंतु घर सजा है जैसे धरती पर स्वर्ग हो
कुर्सी की गोटी फिट करने में जगजाहिर हैं,
सत्ता में उठक-पटक कला के यह माहिर हैं
मंत्रिपद न पायें भला क्या मजाल है,
इनको न घास डाले कौन माई का लाल है ?
kamal
इति नेतापुराण कथा प्रथमोध्याय ( दो अध्याय बाकी हैं )
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2 comments:
सार्थक और बढ़िया है
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'विज्ञान' पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!
आ.शर्मा जी, आपके निरंतर एवं वैविध्यपूर्ण लेखन से प्रभावित हूँ. आप 'ऋषभ उवाच' पर आए,इस हेतु यहाँ आकर आभार व्यक्त कर रहा हूँ.
स्नेहाधीन
ऋ. आपका
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