Friday, July 31, 2009

एक हास्य-गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ आलोचना का स्वागत है !

" एरियर की उड़ान "

प्रिये न चिंता करना तुम एरियर शीघ्र आनेवाला है

टी० वी० फ्रिज का स्वप्न पुराना अब रंग लाने वाला है

अर्थ-तंत्र हो भले जूझता दुखदायी महेंगाई से ,

किंतु प्रशासन सरकारी झंडा फहराने वाला है

कुछ जुगाड़ कर जोड़ तोड़ कर बिल-बाबू को पटा लिया है,

थोडी बहुत धौस पट्टी से काम निकल आने वाला है

बनिए से मन-माफिक चीज़ें सब उधार लेलेना तुम,

चेक मिलते ही समझो क़र्ज़ उतर जाने वाला है

एक दो नहीं दर्ज़न भर साड़ी की बुकिंग करा देना ,

देर सवेर हुई तो क्या सावन सठियाने वाला है

घटिया चप्पल, बिछिया पायल सभी बादल दूँगा आकर ,

हाथ तुम्हारा चूड़ी कंगन से लद जाने वाला है

रक्षा-बंधन पर ढेर मिठाई मंगवा कर रख लेना तुम,

बेरोज़गारी का मारा वह आख़िर मेरा साला है

कमल

2 comments:

ओम आर्य said...

badhiya khwaab dikhate ho .....bahut hi sundar .......badhaaee

Kamal said...

आदरणीय ओम आर्य जी,
आपने इस हास्य कविता को सराहा , आभारी हूँ |
कमल