Wednesday, July 22, 2009
कविता - अस्ताचलगामी
"अस्ताचलगामी "
मेरे देवता ! तुमने, मुझसे कुछ माँगा नहीं ,
मैंने ही सदा तुमसे बहुत कुछ पाया है ,
अंतस में तुमने जो पीड़ा-लोक धर दिया
अक्षर अक्षर वही ढर कर बाहर आया है
ह्रदय की कसक पलकों में समेट
दृग-जल भर लिए ,
छटपटाती आह ने सृजन की चाह ने
वेदना को स्वर दिए
गीतों में उभरा जो तुम्हारा ही साया है !
मुझमें तुम्हारी अमानत जो शेष है
मैंने वह तुम्हें ही सौपने की ठानी है
क्योंकि मेरी काया में समाया तुम्हारा सूर्य
संध्या की छाया में अब अस्ताचलगामी है
कमल
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
sundar bhav
abhinav kavita,,,,,,,
badhaai !
waah waah !
आदरणीय शब्द सुधा जी और अलबेला खत्री.co m जी ,
कविता की सराहना के लिए आभारी हूँ | आपका आशीर्वाद पहली बार मिला आशा है आगे भी कृपा दृष्टि बनी रहेगी | धन्यवाद
कमल
Post a Comment