Sunday, June 14, 2009

दीप और शलभ

दीप और शलभ (शमा - परवाना ) की युगल प्रेमी के रूप में उपमाओं से साहित्य का भंडार भरा है । पर एक दिन जब मैंने इन दोनों की " तू तू मैं मैं " सुनी तब से दुविधा में पड़ गया हूँ। उनके इस वाक-युद्ध पर स्पष्टीकरण के लिए आपको सादर आमंत्रित कर रहा हूँ ।

दीप - शलभ संवाद

मचलते शलभ ने कहा दीप से,

मौत मेरी तेरी ज़िन्दगी का सफर है

मेरे तरुण प्राण की आहुती पर

युगों से रही ज्योति तेरी अमर है ।

की नीयत

कीट के व्यंग से तिलमिला कर दिए ने

तिरस्कार में सिर हिला कर कहा

उन्माद का एक आवेग था

प्यार की राह में जो सुलगता रहा ।

नियति की नीयत se रहा अविचलित

तापस अंधेरे ki आराधना हूँ,

जलता रहा साथ चलता रहा

बावले उस तिमिर की सफल साधना हूँ !

कमल

2 comments:

ओम आर्य said...

ek sundar abhiwyakti.....

Kamal said...

Om ji! sarahana ke liye dhanyawaad
kamal