दीप और शलभ (शमा - परवाना ) की युगल प्रेमी के रूप में उपमाओं से साहित्य का भंडार भरा है । पर एक दिन जब मैंने इन दोनों की " तू तू मैं मैं " सुनी तब से दुविधा में पड़ गया हूँ। उनके इस वाक-युद्ध पर स्पष्टीकरण के लिए आपको सादर आमंत्रित कर रहा हूँ ।
दीप - शलभ संवाद
मचलते शलभ ने कहा दीप से,
मौत मेरी तेरी ज़िन्दगी का सफर है
मेरे तरुण प्राण की आहुती पर
युगों से रही ज्योति तेरी अमर है ।
की नीयतकीट के व्यंग से तिलमिला कर दिए ने
तिरस्कार में सिर हिला कर कहा
उन्माद का एक आवेग था
प्यार की राह में जो सुलगता रहा ।
नियति की नीयत se रहा अविचलित
तापस अंधेरे ki आराधना हूँ,
जलता रहा साथ चलता रहा
बावले उस तिमिर की सफल साधना हूँ !
कमल
2 comments:
ek sundar abhiwyakti.....
Om ji! sarahana ke liye dhanyawaad
kamal
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