Saturday, June 13, 2009

कुछ स्वछन्द करुण-रस छंद

कुछ " स्वछन्द करुण-रस छंद " धवस्त कर मेरा स्वप्नागार प्रिय गए तुम जाने किस लोक , हो गई तापस किरण विलीन निविड़ तम में प्रकाश का लोप ! खो गया पल में हास-निवेश लुटा सुख-स्वप्नों का परिवेश, सजग स्मृतियों के अवशेष , भर गए अंतस में चिर-क्लेश ! नियति की निष्ठुरता का दंश धर गया प्राणों में विष घोल , भर गए अंतस में अभिशाप ये कैसा वरदानों का मोल ? हृदय में मचता हाहाकार वियोगी मन की सुन चीत्कार , अनल सम लगती मलय-बयार मेघ बरसे झरते अंगार , लिए हूँ अधरों पर मुस्कान छिपाए उर में दावानल , जलाये नभ पर तारक-दीप अमा रोती धोती काजल !

कमल ahutee@gmail.com

2 comments:

रंजना said...

सचमुच अद्भुत रसधार बहाई आपने....वाह !!!

Kamal said...

आदरणीय रंजना जी,
प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ. आगे भी आपके आशीर्वाद की प्रतीक्षा रहेगी.
कमल