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कुछ स्वछन्द करुण-रस छंद
कुछ " स्वछन्द करुण-रस छंद "
धवस्त कर मेरा स्वप्नागार
प्रिय गए तुम जाने किस लोक ,
हो गई तापस किरण विलीन
निविड़ तम में प्रकाश का लोप !
खो गया पल में हास-निवेश
लुटा सुख-स्वप्नों का परिवेश,
सजग स्मृतियों के अवशेष ,
भर गए अंतस में चिर-क्लेश !
नियति की निष्ठुरता का दंश
धर गया प्राणों में विष घोल ,
भर गए अंतस में अभिशाप
ये कैसा वरदानों का मोल ?
हृदय में मचता हाहाकार
वियोगी मन की सुन चीत्कार ,
अनल सम लगती मलय-बयार
मेघ बरसे झरते अंगार ,
लिए हूँ अधरों पर मुस्कान
छिपाए उर में दावानल ,
जलाये नभ पर तारक-दीप
अमा रोती धोती काजल !
कमल ahutee@gmail.com
2 comments:
सचमुच अद्भुत रसधार बहाई आपने....वाह !!!
आदरणीय रंजना जी,
प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ. आगे भी आपके आशीर्वाद की प्रतीक्षा रहेगी.
कमल
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