Friday, June 12, 2009
ज़िन्दगी की शाम
झुर्रिओं भरा चेहरा... गंजे सिर पर इक्का दुक्का सफ़ेद बाल ... मैली बनियायन से झांकती सिकुड़ रही खाल... किसी मध्यवर्गीय परिवार के उस वृद्ध को दरवाजे पर पुराणी कुर्सी में बैठे एक अल-सुबह निराश दृष्टि से आसमान ताकते देखा था। वह आकृति दिन भर मन को मथती रही और रात कविता बन कागज़ पर बिछ गई । अतीत के इस संयोग को पाठकों के साथ बांटना चाहता हूँ। :-
"संघर्ष-शील जीवन की शाम "
अभी जीवन शेष साथी
है अभी उम्मीद बाकी
कठिन परिश्रम संघर्षों की, पारियों के सफल नायक,
जर्जरित तन व्यथित मन ,तुम न थक कर बैठ जाना
ज़िन्दगी की शाम पर घिरते अंधेरे लाँघ जाना
भोर के आकाश का आलोक मुठिओं भर लूट लाना।
और यूँ अगवा किए आलोक में
डूबा लेना रात अमा की !
बिखरते परिवार के परिवेश में, दर्द बनता पीढियों का अंतराल
कौन जाने कहाँ जा कर थमेगा इस सदी का मोह-माया-जाल
। तुम उपेक्षा का घिनोना गरल पी, कंठ में रख कर जमा लेना
और अपनों से मिले अपमान की घूंट कड़वी सब पचा लेना।
सह रही है घाव सब कुछ
और सह लेगी ये छाती
ताकते क्या हो तुम्हें कब रोक पायीं चिर-अगम आकाश की मजबूरियां
अरे तुमने तो उछल कर नाप डालीं ,सौरमंडल के ग्रहों की दूरियां
उम्र की दहलीज़ पर घिरते तमस के पार जाना , भय न खाना
चिर-सृजन का बीज तुम, अमरत्व पी कर लौट आना
सृष्टि का वरदान हो तुम
अंकुरण की अमर थाती
अभी जीवन शेष साथी
है अभी उम्मीद बाक़ी
कमल ahutee@gmail.com
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4 comments:
ek sakaratmak soch ko darshati kawita....achchhi rachana
priya om Ji ,
rachana ki sarahana ke liye abhari hun
kamal
bahut hi maarmik aur saarthak post
badhaai...............
आदरणीय अलबेला जी,
"जीवन की शाम " रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ.अपना ब्लॉग आज ही दो दिन बाद खोला, अस्तु विलंब के लिए खेद है. मैं ekavita@yahoo.com और hindi-bharat@yahoo.com पर भी रचनाएँ प्रकाशित करता हूँ इन web sites पर भी आप हिंदी कविताओं का आनंद ले सकते हैं.
साभार
कमल ahutee@gmail.com
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