Friday, May 22, 2009

ग़ज़ल

ग़ज़ल
ज़िन्दगी के सफर में मिले हमसफ़र,
साथ में चल पड़े कारवां जोड़ कर
तूफां आए तो कुछ खो गए बा सफर,
अपनी यादों के गहरे निशां छोड़ कर
यूँ चमन में खिले फूल ढेरों मगर,
ले गए सब के सब बागबाँ तोड़कर
अपनी खानाबदोशी की पहचान थी ,
फाकेमस्ती लुटी के किस छोर पर
टूटा तारा उठी आसमां पर नज़र,
चलबसा दिलज़ला ये जहाँ छोड़ कर
अपनी रातें कटीं कर्बला में कई ,
दर से गुज़रे मगर यार मुंह मोड़ कर
दर्देदिल अपना कुछ यों बयां कर `कमल`
सो गया कब्र में फ़िर कफ़न ओढ़ कर
कमल ahutee@gmail.com

4 comments:

Vinay said...

bahut behatreen ghazal hai.

वीनस केसरी said...

सुन्दर शेर अच्छी गजल

वीनस केसरी

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा गज़ल!

Kamal said...

आदरणीय विनय जी, केसरी जी एवं उड़न तश्तरी,
प्रतिक्रिया के लिए विशेष आभारी हूँ. धन्यवाद् . आशीर्वाद देते रहिये .
कमल- ahutee@gmail.com