Monday, May 25, 2009

" हृदय रोता है "

हृदय रोता है। प्रिये तुम्हारे स्मृति-कोष का विस्तार सहेज पाने में, आकाश,दिशाएँ, सौरमंडल बहुत छोटा है। यादों के महासागर से उठा पीड़ा का सघन घन, धीरज का बाँध तोड़ पलकें भिगोता है निशा की निस्तब्धता में तारक-वालियों के बीच , निगाहें भटकती हैं आसरा खोता है। काश ! तुम्हें समझा पाता उम्र के इस पडाव पर, तुमसे बिछुड़ने का संताप क्या होता है। हृदय रोता है। कमल - ahutee@gmail.com

2 comments:

रंजना said...

अद्वितीय !!!! क्या भाव और क्या अभिव्यक्ति !! वाह !!


निशब्द कर दिया आपने...क्या कहूँ कुछ भी नहीं सूझ रहा...

Kamal said...

आदरणीय रंजना जी,
कवि की अंतर्व्यथा जब शब्दों में ढल कर किसी भावुक हृदय का अंतर्स्पश करती है तो उसकी प्रतिध्वनि पाठक की प्रतिक्रिया के रूप में रचनाकार की पीडा को बांटती है.
आप द्वारा रचना की सार्थकता का अहसास करने एवं व्यथा बाँट लेने के लिए हृदय से आभारी हूँ.
सादर
कमल