Sunday, May 17, 2009

स्मरण के क्षण

पुण्य-स्मृति दिवस
पुण्य-स्मृति -दिवस का
प्राणों से अटूट नाता है
पीर अंतस में उमड़ती है
बाँध धीरज का टूट जाता है
बीते क्षण प्राणवंत बन
मन को जब डसते हैं,
निष्ठुर अतीत के स्मरण
अश्रु-कण बन बरसते हैं
सुधियों के काल -खंड जब
मानस-पटल पर छाते हैं,
इक अबूझ अंतर्वेदना में
प्राण छटपटाते हैं
और तब तुम्हारी मधुर
यादों में खो जाता हूँ,
तुम्हें भीगी पलकों में
बंद कर सो जाता हूँ
कमल

7 comments:

Smart Indian said...

आदरणीय शर्मा जी,

कविता में आपने अपने ह्रदय की स्थिति को बखूबी व्यक्त किया है. मैं समझ
सकता हूँ कि आज का दिन आपके लिए कितनी यादों का झंझावात लिए हुए होगा. इस
नाज़ुक मौके पर हम सब आपके साथ हैं.

अनुराग.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आदरणीय कमल जी आपके साथ हमारी सँवेदनाएँ भी शामिल हैँ
सादर, स स्नेह,
- लावण्या

Kamal said...

अनुराग जी, एवं लावण्या जी ,
संवेदना एवं आशीर्वाद के लिए धन्यवाद
कमल

Kamal said...

अनुराग जी, एवं लावण्या जी ,
संवेदना एवं आशीर्वाद के लिए धन्यवाद
कमल

रंजना said...

पीडा को आपने शब्दों में ऐसे बाँधा है की वे पाठक के भी अंतस्थल को भिंगो जाती हैं...

बहुत ही भावपूर्ण मर्मस्पर्शी कविता.

निर्मला कपिला said...

apki sanvednayen manko chookar ankho se bahar nikal gayee bahut hi bhav pooran abhivyaki hai

Kamal said...

आदरणीय सुश्री कपिला जी एवं सुश्री रंजना जी,
धन्यवाद. आपके शब्दों ने मेरी पीडा काफी कुछ बाँट ली है.
मन की पीडा शब्दों में बन्ध संप्रेषण पैना करती है
पर मित्रों की सहानुभूति मन का भार हरा करती है.
आभारी,
कमल.