पुण्य-स्मृति दिवस
पुण्य-स्मृति -दिवस का
प्राणों से अटूट नाता है
पीर अंतस में उमड़ती है
बाँध धीरज का टूट जाता है।
बीते क्षण प्राणवंत बन
मन को जब डसते हैं,
निष्ठुर अतीत के स्मरण
अश्रु-कण बन बरसते हैं।
सुधियों के काल -खंड जब
मानस-पटल पर छाते हैं,
इक अबूझ अंतर्वेदना में
प्राण छटपटाते हैं।
और तब तुम्हारी मधुर
यादों में खो जाता हूँ,
तुम्हें भीगी पलकों में
बंद कर सो जाता हूँ।
कमल
7 comments:
आदरणीय शर्मा जी,
कविता में आपने अपने ह्रदय की स्थिति को बखूबी व्यक्त किया है. मैं समझ
सकता हूँ कि आज का दिन आपके लिए कितनी यादों का झंझावात लिए हुए होगा. इस
नाज़ुक मौके पर हम सब आपके साथ हैं.
अनुराग.
आदरणीय कमल जी आपके साथ हमारी सँवेदनाएँ भी शामिल हैँ
सादर, स स्नेह,
- लावण्या
अनुराग जी, एवं लावण्या जी ,
संवेदना एवं आशीर्वाद के लिए धन्यवाद
कमल
अनुराग जी, एवं लावण्या जी ,
संवेदना एवं आशीर्वाद के लिए धन्यवाद
कमल
पीडा को आपने शब्दों में ऐसे बाँधा है की वे पाठक के भी अंतस्थल को भिंगो जाती हैं...
बहुत ही भावपूर्ण मर्मस्पर्शी कविता.
apki sanvednayen manko chookar ankho se bahar nikal gayee bahut hi bhav pooran abhivyaki hai
आदरणीय सुश्री कपिला जी एवं सुश्री रंजना जी,
धन्यवाद. आपके शब्दों ने मेरी पीडा काफी कुछ बाँट ली है.
मन की पीडा शब्दों में बन्ध संप्रेषण पैना करती है
पर मित्रों की सहानुभूति मन का भार हरा करती है.
आभारी,
कमल.
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