Sunday, May 10, 2009
माँ
मैं चिर कृतज्ञ माता तेरा
तुमने जो प्यार दुलार दिया,
नित संघर्षों से जूझ स्वयं
मुझ पर सारा सुख वार दिया।
करते मनुहार नहीं थकती
माँ मेरी ममता में अटकीं
तीरथ पैगम्बर पीर सभी के
तीर लिए मुझको भटकीं ।
क्या मजाल मुझको लगने दी
हवा कभी आभावों की,
मेरी दुखती रग सहलातीं,
तुम भुला पीर निज घावों की।
तुमने दोनों बांह पकड़ जब
धरती पर चलना सिखलाया ,
मंजिलें पार करने का साहस
स्वतः मेरे कदमों ने पाया।
तेरे आशीर्वचन कवच बन
रहते सदा मुझे घेरे,
विजयश्री के वरदान बने
तव वरदहस्त सर पर मेरे।
जब जब मुझे दसा दुनिया ने (Dasa)
विष दांतों की तीव्र चुभन से,
गरल बन गया अमृत माता
एक तुम्हारी मधुर छुवन से।
मैं हूँ सतत र्रिनी तेरे
उपकारों की बौछारों का,
तेरे आँचल की छाया में
पलती ममता मनुहारों का ।
गीतों की इस पुष्पांजलि में
श्रद्धा के सुमन सजाये हैं,
तुमने स्वर दिए सदा इनको
जो गीत बनाए गाये हैं।
अपने आँचल से धक लेना
चिर-निद्रा जब सो जाऊं मैं,
माता बन पुनः जनम देना
जब जब धरती पर आऊं मैं.
kamal ahutee@gmail.com
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4 comments:
माँ तो ऐसी ही होती है. अति सुन्दर.
मातृ दिवस पर समस्त मातृ-शक्तियों को नमन एवं हार्दिक शुभकामनाऐं.
Matri-Diwas par apki shubhkamnayen, udgar avam kavita par pratikriya ke liye aabhari hun.
Kripa banaye rahen.
Kamal
इस विषय पर जितना भी लिखें कम है
राकेश जी,
तिप्पिनी के लिए धन्यवाद्
कमल
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