Friday, April 3, 2009
रामनवमी
अपने युगपुरुषों के प्रति आज शेष कितना संवेदन ?
भौतिक सुख के सम्मोहन में निपट स्वार्थरत डूबा मन।
चहरे पर सैकड़ों मुखौटे बदला करते है नेतागण
उनकी वाक्पटुता पर लज्जित होता स्वयं दशानन रावन ।
रामजन्मदिन रामलला के मन्दिर का दोहराते प्रण
"प्राण जाएँ पर जाए ना वचन" कहाँ कभी होता पालन ।
सत्तासुख-सुविधा त्यागें करे लोकहित अर्पण तन-मन
ऐसे कितने तत्पर होंगे राजपाट ताज करें वन गमन।
महापर्व पर चिंतन मनन और कर सकें निज को अर्पण
आत्मसात कर लें जीवन में पग पग पर उनके आचरण ।
मर्यादा-पुरुषोत्तम राम अर्चन वंदन करे सदा मन
उनमें रच-बस कर ही होगा नित मर्यादाओं का पालन ।
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रामनवमी राम का ही जन्म-दिन केवल नहीं
श्री रामचरित-मानस का भी जन्म-दिन होता यही।
आदर्श -पुरूष श्री राम की जीवनगाथा गाईये ,
परिवार में सबको समेत राम-कथा सुनाईये ।
"कमल"
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2 comments:
बहुत बढिया ।
Dhanyawad Sangeeta Ji.AAj hindutva par ek kavita blog ki hai.Use jaroor padhen.
kamal
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