एक हास्य-गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ आलोचना का स्वागत है !
" एरियर की उड़ान "
प्रिये न चिंता करना तुम एरियर शीघ्र आनेवाला है
टी० वी० फ्रिज का स्वप्न पुराना अब रंग लाने वाला है
अर्थ-तंत्र हो भले जूझता दुखदायी महेंगाई से ,
किंतु प्रशासन सरकारी झंडा फहराने वाला है
कुछ जुगाड़ कर जोड़ तोड़ कर बिल-बाबू को पटा लिया है,
थोडी बहुत धौस पट्टी से काम निकल आने वाला है
बनिए से मन-माफिक चीज़ें सब उधार लेलेना तुम,
चेक मिलते ही समझो क़र्ज़ उतर जाने वाला है
एक दो नहीं दर्ज़न भर साड़ी की बुकिंग करा देना ,
देर सवेर हुई तो क्या सावन सठियाने वाला है
घटिया चप्पल, बिछिया पायल सभी बादल दूँगा आकर ,
हाथ तुम्हारा चूड़ी कंगन से लद जाने वाला है
रक्षा-बंधन पर ढेर मिठाई मंगवा कर रख लेना तुम,
बेरोज़गारी का मारा वह आख़िर मेरा साला है
कमल
2 comments:
badhiya khwaab dikhate ho .....bahut hi sundar .......badhaaee
आदरणीय ओम आर्य जी,
आपने इस हास्य कविता को सराहा , आभारी हूँ |
कमल
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