Friday, December 17, 2010
सांझ के साये
Thursday, December 10, 2009
टोपियाँ
Sunday, August 16, 2009
वर्षा - विरह
Saturday, August 8, 2009
एक गीत आज अपने लिए भी
(यह गीत आठ अगस्त को लिखा गया था पर
कंप्यूटर प्रॉब्लम के कारण विलंब से ब्लॉग हुआ ) एक गीत आज अपने लिए भी आज तिरासी पार हो गए स्मृति-पट पर धुंधले चित्र बनते और बिगड़ते हैं , मीठे खट्टे अनुभव के पल सजते और सिहरते हैं बचपन तथा किशोर वयस के सपने तार तार हो गए आज तिरासी ....... कपडे नए, नए जूते थे राजकुमारों से लगते थे , गौनई मंजीरे ढोलक पर गुलगुले बतासे बँटते थे माँ के हाथों दूध-बतासा- तिल, के दिन दुश्वार हो गए आज तिरासी ..... भरी जवानी में इतराया छोडूं क्या स्वीकार करुँ, भीड़ लगी रहती आँगन में किसको कितना प्यार करुँ फूलों के वे सब गुलदस्ते ढली उमर तो खार हो गए .... आज तिरासी ..... हुए अधेड़ समय खप जाता लाभ-हानि के गुणा- भाग में परिवारिक दायित्व निभाते खींच तान जो मिला हाथ में उलझे समीकरण सुलझाते कुछ सुलझे कुछ उधार हो गए आज तिरासी ..... आठ दशक बीते जीवन के आ घेरा पत्नी-वियोग ने , शुरू हो गई उलटी गिनती डाला डेरा रोग शोक ने
हारे थके हुए मांझी के
डांडे बीच धार खो गए आज तिरासी .......
अब नहीं सिमटती साँसों का
उद्देश्य शेष कोई अपना ,
शब्द-सृजन की पूंछ पकड़
वैतरणी के पार का सपना
लगन लगी उनसे मिलने की ,
चिता सेज जो यार सो गए आज तिरासी पार हो गए
कमल
Thursday, August 6, 2009
व्यंग कविता नेता पुराण
Tuesday, August 4, 2009
गीत रक्षा-बंधन
Sunday, August 2, 2009
( व्यंग कविता ) तुकबंदी जी
पुस्तकें
Friday, July 31, 2009
एक हास्य-गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ आलोचना का स्वागत है !
" एरियर की उड़ान "
प्रिये न चिंता करना तुम एरियर शीघ्र आनेवाला है
टी० वी० फ्रिज का स्वप्न पुराना अब रंग लाने वाला है
अर्थ-तंत्र हो भले जूझता दुखदायी महेंगाई से ,
किंतु प्रशासन सरकारी झंडा फहराने वाला है
कुछ जुगाड़ कर जोड़ तोड़ कर बिल-बाबू को पटा लिया है,
थोडी बहुत धौस पट्टी से काम निकल आने वाला है
बनिए से मन-माफिक चीज़ें सब उधार लेलेना तुम,
चेक मिलते ही समझो क़र्ज़ उतर जाने वाला है
एक दो नहीं दर्ज़न भर साड़ी की बुकिंग करा देना ,
देर सवेर हुई तो क्या सावन सठियाने वाला है
घटिया चप्पल, बिछिया पायल सभी बादल दूँगा आकर ,
हाथ तुम्हारा चूड़ी कंगन से लद जाने वाला है
रक्षा-बंधन पर ढेर मिठाई मंगवा कर रख लेना तुम,
बेरोज़गारी का मारा वह आख़िर मेरा साला है
कमल
Wednesday, July 22, 2009
कविता - अस्ताचलगामी
Saturday, July 18, 2009
Thursday, July 16, 2009
बरसो रे घन
Sunday, June 14, 2009
दीप और शलभ
दीप और शलभ (शमा - परवाना ) की युगल प्रेमी के रूप में उपमाओं से साहित्य का भंडार भरा है । पर एक दिन जब मैंने इन दोनों की " तू तू मैं मैं " सुनी तब से दुविधा में पड़ गया हूँ। उनके इस वाक-युद्ध पर स्पष्टीकरण के लिए आपको सादर आमंत्रित कर रहा हूँ ।
दीप - शलभ संवाद
मचलते शलभ ने कहा दीप से,
मौत मेरी तेरी ज़िन्दगी का सफर है
मेरे तरुण प्राण की आहुती पर
युगों से रही ज्योति तेरी अमर है ।
की नीयतकीट के व्यंग से तिलमिला कर दिए ने
तिरस्कार में सिर हिला कर कहा
उन्माद का एक आवेग था
प्यार की राह में जो सुलगता रहा ।
नियति की नीयत se रहा अविचलित
तापस अंधेरे ki आराधना हूँ,
जलता रहा साथ चलता रहा
बावले उस तिमिर की सफल साधना हूँ !
कमल
Saturday, June 13, 2009
कुछ स्वछन्द करुण-रस छंद
कमल ahutee@gmail.com
Friday, June 12, 2009
ज़िन्दगी की शाम
Tuesday, June 2, 2009
ग़ज़ल
Monday, May 25, 2009
" हृदय रोता है "
Friday, May 22, 2009
ग़ज़ल
Sunday, May 17, 2009
स्मरण के क्षण
Sunday, May 10, 2009
माँ
Sunday, April 12, 2009
चुनावी दोहे
न्यायाधीश मूकदर्शक आचारसंहिता तार तार ,
अफसर चमचागीरी में रत सत्ता को सर्वाधिकार ।
सभी दलों पर अल्पसंख्यकों के वोटों का भूत सवार ,
लंबे चौडे वादे करते मनुहारों की है भरमार ।
संविधान की मूलभावना होती आयी शर्मसार ।
व्यक्ति की अभिव्यक्ति पर लगने लगे अंकुश अपार ।
करें विषवमन सत्ताधारी उनके क्षम्य चुनाव प्रचार ,
पर विपक्ष का वरुण विचारा रासुका का हुआ शिकार।
छोड़ साईकिल हाथ जोड़ नेता पहुंचे जय हो दरबार ,
नहीं हाथ पर टिकट मिला तो हाथी पर हो गए सवार।
नेताओं के चमचों की पोबारह का बना सुयोग ,
जेब भरी रहती नोटों से मुफ्त छक रहे मोहन भोग . कमल