Monday, May 25, 2009
" हृदय रोता है "
हृदय रोता है।
प्रिये तुम्हारे स्मृति-कोष का
विस्तार सहेज पाने में,
आकाश,दिशाएँ, सौरमंडल
बहुत छोटा है।
यादों के महासागर से
उठा पीड़ा का सघन घन,
धीरज का बाँध तोड़
पलकें भिगोता है
निशा की निस्तब्धता में
तारक-वालियों के बीच ,
निगाहें भटकती हैं
आसरा खोता है।
काश ! तुम्हें समझा पाता
उम्र के इस पडाव पर,
तुमसे बिछुड़ने का
संताप क्या होता है।
हृदय रोता है।
कमल - ahutee@gmail.com
Friday, May 22, 2009
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ज़िन्दगी के सफर में मिले हमसफ़र,
साथ में चल पड़े कारवां जोड़ कर ।
तूफां आए तो कुछ खो गए बा सफर,
अपनी यादों के गहरे निशां छोड़ कर।
यूँ चमन में खिले फूल ढेरों मगर,
ले गए सब के सब बागबाँ तोड़कर।
अपनी खानाबदोशी की पहचान थी ,
फाकेमस्ती लुटी आ के किस छोर पर।
टूटा तारा उठी आसमां पर नज़र,
चलबसा दिलज़ला ये जहाँ छोड़ कर।
अपनी रातें कटीं कर्बला में कई ,
दर से गुज़रे मगर यार मुंह मोड़ कर।
दर्देदिल अपना कुछ यों बयां कर `कमल`
सो गया कब्र में फ़िर कफ़न ओढ़ कर।
कमल ahutee@gmail.com
Sunday, May 17, 2009
स्मरण के क्षण
पुण्य-स्मृति दिवस
पुण्य-स्मृति -दिवस का
प्राणों से अटूट नाता है
पीर अंतस में उमड़ती है
बाँध धीरज का टूट जाता है।
बीते क्षण प्राणवंत बन
मन को जब डसते हैं,
निष्ठुर अतीत के स्मरण
अश्रु-कण बन बरसते हैं।
सुधियों के काल -खंड जब
मानस-पटल पर छाते हैं,
इक अबूझ अंतर्वेदना में
प्राण छटपटाते हैं।
और तब तुम्हारी मधुर
यादों में खो जाता हूँ,
तुम्हें भीगी पलकों में
बंद कर सो जाता हूँ।
कमल
Sunday, May 10, 2009
माँ
मैं चिर कृतज्ञ माता तेरा
तुमने जो प्यार दुलार दिया,
नित संघर्षों से जूझ स्वयं
मुझ पर सारा सुख वार दिया।
करते मनुहार नहीं थकती
माँ मेरी ममता में अटकीं
तीरथ पैगम्बर पीर सभी के
तीर लिए मुझको भटकीं ।
क्या मजाल मुझको लगने दी
हवा कभी आभावों की,
मेरी दुखती रग सहलातीं,
तुम भुला पीर निज घावों की।
तुमने दोनों बांह पकड़ जब
धरती पर चलना सिखलाया ,
मंजिलें पार करने का साहस
स्वतः मेरे कदमों ने पाया।
तेरे आशीर्वचन कवच बन
रहते सदा मुझे घेरे,
विजयश्री के वरदान बने
तव वरदहस्त सर पर मेरे।
जब जब मुझे दसा दुनिया ने (Dasa)
विष दांतों की तीव्र चुभन से,
गरल बन गया अमृत माता
एक तुम्हारी मधुर छुवन से।
मैं हूँ सतत र्रिनी तेरे
उपकारों की बौछारों का,
तेरे आँचल की छाया में
पलती ममता मनुहारों का ।
गीतों की इस पुष्पांजलि में
श्रद्धा के सुमन सजाये हैं,
तुमने स्वर दिए सदा इनको
जो गीत बनाए गाये हैं।
अपने आँचल से धक लेना
चिर-निद्रा जब सो जाऊं मैं,
माता बन पुनः जनम देना
जब जब धरती पर आऊं मैं.
kamal ahutee@gmail.com
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